आम के पेड़ों का रहस्यमय सूखना, खतरे के साए में किसान और पर्यावरण

जैव विविधता, पर्यावरणीय संतुलन और जल जीवन पर भी गंभीर संकट बादल

आम के पेड़ों का रहस्यमय सूखना, खतरे के साए में किसान और पर्यावरण

राजेंद्र पयासी-मऊगंज

मऊगंज जिले में आम के पेड़ों का लगातार सूखना एक भयावह संकट के रूप में उभर रहा है। यह समस्या केवल किसानों की आर्थिक कमज़ोरी का कारण नहीं बन रही, बल्कि पूरे क्षेत्र की जैव विविधता, पर्यावरणीय संतुलन और जल जीवन पर भी गंभीर संकट पैदा कर रही है। आम के पेड़ न केवल फल उत्पादन का आधार हैं, बल्कि वे मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने, जल संरक्षण और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
लेकिन अब ये हरे-भरे पेड़ सूखते जा रहे हैं, जिससे फल उत्पादन में भारी गिरावट आई है। इसका सीधा असर किसानों की आजीविका पर पड़ रहा है। आम की खेती पर निर्भर हजारों परिवार इस संकट से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। साथ ही, पेड़ों के सूखने से मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब हो रही है, जिससे भूजल स्तर नीचे गिर रहा है और जल स्रोत कमजोर पड़ रहे हैं। इस समस्या के कारण स्थानीय जल संकट और बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है।

प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो होगा भारी नुकसान-

शासन प्रशासन के लिए यह समय सिर्फ समस्या को देखने का नहीं, बल्कि तुरंत और प्रभावी कदम उठाने का है। इस विषय पर विशेषज्ञों की मदद लेकर पेड़ों की स्थिति का गहन अध्ययन करना होगा। प्रभावित इलाकों में बड़े पैमाने पर पौधरोपण अभियान चलाकर पेड़ों को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम करना होगा। जल संरक्षण के लिए भी रणनीतियां बनानी होंगी ताकि पेड़ों को पर्याप्त जल मिले। यदि शासन प्रशासन ने अभी भी समस्या की गंभीरता को नजरअंदाज किया, तो यह संकट पर्यावरण को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है।

मिट्टी की जांच से मिलेगी समाधान की कुंजी-

इस संकट का सही कारण जानने के लिए मिट्टी की वैज्ञानिक जांच आवश्यक है। जांच से पता चलेगा कि मिट्टी में कौन से पोषक तत्वों की कमी या नमी की कमी पेड़ों को सूखने पर मजबूर कर रही है। उचित उर्वरकों और सुधारात्मक उपायों के बिना पेड़ों को बचाना मुश्किल है। मिट्टी की गुणवत्ता सुधारकर ही पेड़ों को फिर से स्वस्थ और हरा-भरा बनाया जा सकता है।

दीर्घकालीन उपाय पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता-

पर्यावरण संरक्षण में स्थायी समाधान के लिए केवल तत्काल कदम पर्याप्त नहीं, बल्कि लंबे समय तक निरंतर निगरानी, देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता है। जल प्रबंधन को बेहतर बनाना होगा, ताकि पेड़ों को नियमित और पर्याप्त पानी मिल सके। जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। साथ ही, स्कूलों, पंचायतों और स्थानीय समुदायों में पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता फैलाना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियां भी पेड़ों के महत्व को समझें और संरक्षण में अपना योगदान दें

संभले नहीं तो हरित आंचल हो जाएगा वीरान-

अन्य क्षेत्रों की तरह अगर मऊगंज जिले में आम के पेड़ों के सूखने की समस्या का समाधान तत्काल नहीं किया गया, तो यह केवल किसानों की आर्थिक तंगी तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इससे पूरे क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होगा, जल संकट गहरा जाएगा, और मिट्टी की उर्वरता समाप्त हो जाएगी। ऐसे में मऊगंज का हरित आंचल वीरान हो सकता है, जिससे भविष्य की पीढ़ियां भारी नुकसान उठाएंगी इसलिए शासन प्रशासन ही नहीं हर आम व्यक्ति को आगे आना होगा तभी हमारा आने वाला कल आने वाली पीढ़ियों के लिए सुखद रहेगा।