चीन का तिब्बत को गुलाम बनाना और नेफा लद्दाख के भारतीय भूभाग पर अनधिकृत कब्जा तथ्यपरक : अजय खरे
समता सम्पर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक एवं लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने चीन के द्वारा लद्दाख और नेफा क्षेत्र में किए जा रहे अतिक्रमण को लेकर केंद्र सरकार की चुप्पी पर कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि 1962 में संसद ने सर्वसम्मति से चीन के कब्जाए भारतीय भूभाग को वापस लेने का संकल्प लिया था, लेकिन आज वही मुद्दा उठाने वालों की देशभक्ति पर सवाल किए जा रहे हैं।

समता सम्पर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने कहा कि लद्दाख और नेफा पूरी तरह भारतीय भूभाग है। मोदी सरकार को उस पर चीन की दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
तिब्बत को आजाद कराओ, नेफा और लद्दाख बचाओ समाजवादियों का पुराना नारा रहा है। तिब्बत और भारतीय भूभाग पर चीन के मनमानी कब्जे से पूरी दुनिया वाकिफ है। 14 नवंबर सन 1962 को भारतीय संसद ने चीन के आक्रमण के खिलाफ सर्व सम्मत प्रस्ताव पारित करके उसके द्वारा हथियाए गए भारतीय भूभाग को वापस लेने का संकल्प लिया था।
यह पूछा जाना बहुत अजीबोगरीब लगता है कि आपको कैसे पता कि चीन ने भारतीय भूभाग पर कब्जा कर लिया है। आमतौर से सभी लोगों को अपनी जमीन के बारे में पता होता है लेकिन क्या उन्हें अपने देश की जमीन के बारे में पता नहीं होना चाहिए? श्री खरे ने कहा कि यही राष्ट्र बोध है जो लोगों को भौगोलिक पहचान और एक साथ मिल जुल के रहने की भावना देता है।
श्री खरे ने कहा कि संवैधानिक सम्माननीय पद पर बैठने का यह मतलब नहीं कि मुंह से निकला हर वाक्य शिरोधार्य हो जाएगा। इसकी इजाजत तो संविधान भी नहीं देता है। देश के आजादी के आंदोलन से लेकर अभी तक पांच पीढियों से त्याग और संघर्ष करने वाली ऐतिहासिक विरासत पर उनके सच्चे भारतीय नहीं होने की टिप्पणी करना अत्यंत गैर जिम्मेदराना आपत्तिजनक कृत्य है।
संवैधानिक पद पर बैठकर कोई कुछ भी बोलेगा , यह नहीं चलेगा। ऐसी आपत्तिजनक बात के लिए व्यक्ति विशेष से ही नहीं पूरे देश से माफी मांगना होगा। इस घटनाक्रम से देश का हर जागरुक आहत है। कोई भी हमें देश के बारे में सोचने और बोलने से नहीं रोक सकता।
देश को आजादी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने त्याग और बलिदान से दिलाई है। इस बात का एहसास हर किसी को होना चाहिए। श्री खरे ने कहा कि देश की सीमाओं के बारे में सवाल करना राजनीतिक जागरूकता और जिज्ञासा है, गुनाह नहीं। आप सच्चे भारतीय होते तो ऐसा नहीं कहते, ऐसी टिप्पणी अत्यंत गैर जिम्मेदाराना है।
यह बहुत आपत्तिजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी भी नागरिक का देश की सीमाओं के बारे में चिंता व्यक्त करना कोई गुनाह नहीं है। देश का हर नागरिक इस तरह का सवाल कर सकता है। देश की लोकसभा के विपक्ष के नेता तो अपनी बात सदन से लेकर कहीं भी रख सकते हैं।
यह एक कड़वा सच है कि विस्तारवादी चीन ने लंबे समय से नेफा और लद्दाख वाले क्षेत्र में 40000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक भारतीय भूभाग पर अनधिकृत कब्जा कर रखा है और भारतीय सीमा पर आए दिन होने वाली घुसपैठ किसी से छिपी नहीं है।
देखने को मिलता है कि पाकिस्तान के द्वारा कश्मीर के हड़पे गए भूभाग को वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मंत्री और भाजपाई सड़क से लेकर संसद तक आवाज उठाते हैं लेकिन जब चीन से जमीन वापस लेने की बात होती है तो प्रधानमंत्री मोदी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि ना कोई हमारी सीमा में घुस आया है, ना कोई घुसा हुआ है।
लेकिन यह वास्तविकता नहीं है। सच्चाई को स्वीकार करना देश को सावधान करना और उसे छिपाना देश को गुमराह करना है। यह बहुत शर्मनाक बात है कि ऐसे लोग आपत्तिजना टिप्पणी कर रहे हैं जिनका देश की आजादी के आंदोलन से कभी कोई दूर-दूर का रिश्ता नहीं है।
ऐसे लोग जब देशभक्त परिवार को नसीहत देते हैं तो बहुत खराब लगता है। देश को आजाद कराने वालों ने वेतन लेकर आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी थी। देश की आजादी की लड़ाई के दौरान उन्होंने कड़ी से कड़ी जेल यातनाओं को इंकलाबी उद्घोष के साथ सहर्ष से स्वीकार किया था।
श्री खरे ने कटाक्ष किया कि क्या किसी बलात्कारी, हत्यारे ,डकैत, देश का धन लूटकर विदेश भाग जाने वाले लोगों, भ्रष्टाचार करने वाले लोगों , देश को गुमराह करने वाले लोगों से उनकी देशभक्ति पर कभी कोई सवाल किया गया है?
जबकि ऐसे सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए लेकिन सवाल उनसे पूछे जा रहे हैं जिनकी कई पीढ़ियों ने इस देश के लिए निरंतर संघर्ष किया और कर रही हैं। चीन के द्वारा हड़पा गया भारतीय भूभाग केवल 2000 किलोमीटर नहीं बल्कि 40000 वर्ग किलोमीटर के आसपास है।
इस सवाल पर सरकार के द्वारा चुप्पी साध लेना और सवाल करने वाले को नसीहत देना सरासर गलत है। देश के अंदर नफरत का माहौल बनाकर सांप्रदायिक प्रदूषण फैलाने वालों के द्वारा सैकड़ो साल पुराने गड़े मुर्दे उखाड़े जा सकते हैं
वहीं दूसरी ओर देश की सीमाओं को लेकर चिंता व्यक्त करने वाले को कटघरे ने खड़ा किया जा रहा है, जो बहुत गलत है। सच्चा भारतीय ही इस तरह के सवाल करेगा, कायर और कागजी शेर नहीं।
श्री खरे ने कहा कि कोई व्यक्ति चाहे वह कितने बड़े पद पर भी बैठा हो अपना सम्मान उस समय खो देता है जब वह पद और मानव गरिमा के खिलाफ अनुचित टीका टिप्पणी करता है।
दूसरे की देशभक्ति पर सवाल उठाने वाले लोग पहले खुद बताएं कि उन्होंने देश के लिए क्या किया ? देश की सीमा और लोगों की प्रति चिंता के साथ समर्पण भाव से कार्य देशभक्ति की कसौटी हो सकती है। ईमानदारी और राष्ट्रबोध हमें देशभक्ति से जोड़ता है। बेईमानी और नफरत से देश कमजोर होता है।