अशासकीय कॉलेजों की कमर टूटी: APSU ने बढ़ाया संबद्धता शुल्क, प्रदेशभर में मचा विरोध

मध्य प्रदेश के निजी (अशासकीय) महाविद्यालय गहरे आर्थिक संकट और अस्तित्व के खतरे से जूझ रहे हैं। रीवा स्थित अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय द्वारा संबद्धता शुल्क में 200 से 500 गुना तक की अचानक बढ़ोतरी और शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि को 31 अगस्त से घटाकर 31 जुलाई करने के फैसले से पूरे प्रदेश के सैकड़ों कॉलेजों में असंतोष और असमंजस की स्थिति है।

अशासकीय कॉलेजों की कमर टूटी: APSU ने बढ़ाया संबद्धता शुल्क, प्रदेशभर में मचा विरोध

रीवा। मध्य प्रदेश के अशासकीय (निजी) महाविद्यालय इन दिनों अस्तित्व के सबसे गंभीर संकट से जूझ रहे हैं। शासन द्वारा संबद्धता शुल्क में अचानक की गई बेतहाशा वृद्धि ने इन संस्थानों की आर्थिक कमर तोड़ दी है। संचालकों का आरोप है कि यह निर्णय न केवल एकतरफा और तानाशाहीपूर्ण है, बल्कि शिक्षा विरोधी भी है।

रीवा स्थित अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय ने हाल ही में संबद्धता शुल्क में 200 से लेकर 500 गुना तक की अप्रत्याशित वृद्धि की है। इसके साथ ही शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि भी 31 अगस्त से घटाकर 31 जुलाई कर दी गई है। इससे प्रदेशभर के सैकड़ों महाविद्यालयों में असमंजस और आर्थिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है।

मध्यप्रदेश अशासकीय महाविद्यालय संघ के अध्यक्ष सुशील खरे ने बताया कि राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन ने मिलकर निजी महाविद्यालयों को योजनाबद्ध तरीके से हाशिए पर लाने का प्रयास किया है। जब एक ओर सरकारी महाविद्यालयों में बिना बुनियादी ढांचे के ही दाखिले दिए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अशासकीय संस्थानों पर कठोर शर्तें और शुल्क लादे जा रहे हैं।

यह निर्णय हजारों छात्रों और कर्मचारियों के भविष्य को संकट में डाल रहा है, उन्होंने कहा प्रदेश में कई निजी विश्वविद्यालय बिना कैम्पस के ही डिग्रियां वितरित कर रहे हैं, जिससे रेगुलर दाखिले वाले छात्र घटे हैं और अशासकीय महाविद्यालयों में आर्थिक संकट गहराया है,संगठन के पदाधिकारियों का यह भी कहना है कि राज्य सरकार का हस्तक्षेप न केवल महाविद्यालयों की कार्यप्रणाली में बाधा है, बल्कि यह विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर भी कुठाराघात है।

प्रवेश और परीक्षा जैसी प्रक्रियाएं विश्वविद्यालयों के अधिकार क्षेत्र में आती हैं, लेकिन अब विश्वविद्यालय भी सरकारी दबाव में काम कर रहे हैं। वही अस्पष्टता और शुल्क वृद्धि के कारण हजारों छात्रों व उनके अभिभावकों में गहरी दुविधा की स्थिति है। कई छात्रों को यह भी स्पष्ट नहीं है कि जिन कॉलेजों में वे दाखिला लेना चाह रहे हैं, उनकी मान्यता बनी भी है या नहीं।

इस पूरे मामले पर अशासकीय महाविद्यालय संघ ने कुलपति के माध्यम से राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा है। लेकिन अभी तक शासन की ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है।

बीसीए-बीबीए कोर्स पर गहराया संकट

सबसे बड़ा असर उन कॉलेजों पर पड़ा है जो बीसीए और बीबीए जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम संचालित करते हैं। सरकार द्वारा इन कोर्सों को अचानक एआईसीटीई के अधीन कर दिया गया, जिससे सैकड़ों महाविद्यालय प्रवेश प्रक्रिया से ही बाहर हो गए। चौंकाने वाली बात यह है कि इसी अवधि में विश्वविद्यालयों ने इन कोर्सों के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र (NOC) के नाम पर शुल्क भी लिया और संबद्धता जारी भी की। यह दोहरापन निजी कॉलेजों के लिए भ्रम और नुकसान दोनों का कारण बना।

ज्ञापन में संचालकों ने रखी प्रमुख मांगें 

संबद्धता शुल्क में की गई वृद्धि को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए। सीट निर्धारण प्रक्रिया पूरी करने के लिए कॉलेजों को कम से कम 15-20 दिन का समय दिया जाए।नीति निर्माण में पारदर्शिता और संवाद सुनिश्चित किया जाए।

यदि समय रहते नहीं मिला समाधान, तो बंद होंगे दर्जनों कॉलेज

संचालकों का स्पष्ट कहना है कि यदि यह नीति लागू रही, तो प्रदेश में दर्जनों अशासकीय महाविद्यालयों को बंद होने पर मजबूर होना पड़ेगा। यह न केवल निजी क्षेत्र के लिए चुनौती है, बल्कि राज्य के हजारों छात्रों के शैक्षणिक भविष्य के लिए भी घातक सिद्ध होगा।