नरवाई न जलाने तथा इससे जैविक खाद बनाने की सलाह

कृषि विभाग ने किसानों को गेंहू की फसल के बाद बचे नरवाई जलाने से मना किया है क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरता और वातावरण को नुकसान होता है। नरवाई को जैविक खाद बनाने के लिए नाडेप या वर्मी विधि का उपयोग करने की सलाह दी गई है। इससे खेत की मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है और खेती में लागत व समय भी बचता है।

नरवाई न जलाने तथा इससे जैविक खाद बनाने की सलाह

रीवा । कृषि विभाग द्वारा जिले के किसानों को गेंहू तथा अन्य फसलों को काटने के बाद बचे हुए अवशेष (नरवाई) नहीं जलाने की सलाह दी गई है। इस संबंध में उप संचालक कृषि यूपी बागरी ने कहा है कि नरवाई जलाने से एक ओर जहां खेतों में अग्नि दुर्घटना की आशंका रहती है। वहीं मिट्टी की उर्वरकता पर भी विपरीत असर पाता है। इसके साथ ही धुएँ से कार्बन डायआक्साइड की मात्रा वातावरण में जाती है जिससे वायु प्रदूषण होता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति लगभग 6 इंच की ऊपरी सतह पर ही होती है। इसमें खेती के लिए लाभदायक मित्र जीवाणु उपस्थित रहते हैं। नरवाई जलाने से यह नष्ट हो जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति को नुकसान होता है। नरवाई जलाने की बजाए यदि फसल अवशेषों को एकत्रित करके जैविक खाद बनाने में उपयोग किये तो यह बहुत लाभ दायक होगा। नाडेप तथा वर्मी विधि से नरवाई से जैविक खाद आसानी से बनाई जा सकती है। इस खाद में फसलों के लिए पर्याप्त पोषक तत्व रहते हैं। इसके आलावा खेत में रोटावेटर अथवा डिस्क हैरो चलाकर भी फसल के बचे हुए भाग को मिट्टी में मिला देने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है। उप संचालक ने बताया कि गेंहू की फसल के बाद नरवाई को खाद में बदलने तथा बिना जुताई किए फसलों की बुआई के लिए सुपर सीडर तथा हैप्पी सीडर का उपयोग बहुत लाभकारी है। इससे नरवाई नष्ट होने के साथ जुताई और बुवाई का खर्च और समय दोनों बचेगा। साथ ही नरवाई से खाद भी बन जाएगी।