अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में सामने आया बड़ा छात्रवृत्ति घोटाला
मामला भ्रष्टाचार का है, लेकिन अफसर आरोपी नहीं बनें इसलिए जालसाजी में बदल दिया गया. केंद्र सरकार ने पकड़ी थी गड़बड़ी, मध्यप्रदेश सरकार को कार्रवाई के लिए भेजा, अपने को बचाने अफसरों ने रची गहरी साजिश

मध्यप्रदेश के पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में छात्रवृत्ति के नाम पर बड़ा घोटाला किया गया है। यह घोटाला केंद्र सरकार ने पकड़ा है और कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को भेजा है। भ्रष्टाचार करने वाले जिम्मेदार अफसर घोटाले की कार्रवाई की जद में नहीं आएं, इसलिए उन्होंने इसको लेकर गहरी साजिश रची है। जिस मामले की जांच आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) को करना था, अफसर उसकी जांच क्राइम ब्रांच से करा रहे हैं। यह मामला आर्थिक अनियमितता और भ्रष्टाचार से जुड़ा है और इस पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई होना चाहिए थी, लेकिन अफसरों ने इसे क्राइम ब्रांच को सौंपकर जालसाजी में बदलवा दिया। पुलिस ने भी जालसाजी का प्रकरण दर्ज कर लिया है। अगर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्रकरण ईओडब्ल्यू में दर्ज होगा, तो विभाग के जिम्मेदार अफसर जांच के दायरे में आएंगे और उनकी जिम्मेदारी तय होगी। दूसरा पहलू यह भी है कि यह मामला अकेले भोपाल का नहीं है, प्रदेश के अन्य जिलों में यह घोटाला किया गया है।
भोपाल शहर के क्राइम ब्रांच ने इस मामले में 27 जून को जालसाजी का मुकदमा दर्ज किया है। भोपाल क्राइम ब्रांच के मुताबिक 17 जून को सहायक संचालक पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की तरफ से पत्र भेजा गया था। उसमें लिखा था कि 40 शिक्षण संस्थानों की तरफ से अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना में बंदरबांट की गई है। आरोप है कि साल 2021-2022 के बजट में अनुमोदित राशि में से 57 लाख 78 हजार तीन सौ रुपए अपात्र लाभार्थियों के नाम पर 40 संस्थानों ने सरकार से हासिल कर लिए थे। यह राशि केंद्र सरकार की तरफ से राज्य सरकार को मदरसों, जैन, बौद्ध, सिक्ख, इसाई और पारसी समाज के बच्चों को जारी की गई थी। मामले में शिक्षण संस्थानों के मालिकों और नोडल अधिकारियों को आरोपी बनाया गया है। पुलिस ने इस फर्जीवाड़े में 27 जून को प्रकरण 95/25 दर्ज कर लिया था।
रडार पर आए शिक्षण संस्थान
जिन शिक्षण संस्थाओं की भूमिका संदिग्ध पाई गई है, उनमें मदरसा एमएस आसिफ सईद उर्दू, हनीफ सर मैथ्यू अर्नाल्ड मुल्ला कॉलोनी करोंद, न्यू म.ज. कन्वेंट स्कूल रंभा नगर बैरसिया, सेंट देसूजा कॉन्वेंट रेतघाट कमला पार्क, सिटी मोंटेसरी स्कूल आम वाली मस्जिद जहांगीराबाद, न्यू एससीबी कॉन्वेंट स्कूल शांति गार्डन अशोका गार्डन, एम.अरबिया अमीरुल इस्लाम, गैस आरएचटी, एम.दीनियत अयशुल उलुम, एम. दिनीयत टी.मुल मोमनिन इलाही, मो. फैज रज़्जाकिया कमला नगर, इस्लामिया अनवारुल न्यू राजीव कॉलोनी, निशा प्राइमरी जिया कॉलोनी, जीनतुल उलूम नवाब कॉलोनी, मदरसा अहद तालीमुल कुरान झुग्गी बस्ती, बाग दिलकुशा, मदरसा ऐमन दीनी भोईपुरा, मदरसा एमएस अल उस्मानिया शारदा नगर, मदरसा आसिफ सईद उर्दू, हनीफ कॉलोनी, मदरसा बुशरा दीनी 12 कोला मोहल्ला ईटखेड़ी, मदरसा दीनी.वरिशुल हयात शारदा नगर और मदरसा इ कैसर अटल नेहरू नगर शामिल हैं।
अकेले भोपाल नहीं, प्रदेश के दूसरे शहरों में भी किया गया घोटाला
खास बात यह कि केंद्र सरकार की इस योजना का लाभ केवल भोपाल शहर को नहीं मिला है। दूसरे अन्य जिलों को भी इसका लाभ मिला था। यदि भोपाल शहर में यह गड़बड़ी थी, तो पूरी योजना के पात्र लोगों की जांच बारीकी से की जानी चाहिए थी, लेकिन केंद्र की निगरानी के भय में आकर बचाव की रणनीति के तहत प्रकरण को क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया। वास्तव में यह मामला जालसाजी का नहीं, आर्थिक अनियमितता का है और इसकी जांच ईओडब्ल्यू से करानी चाहिए थी। यदि यह प्रकरण ईओडब्ल्यू के पास पहुंचता तो प्रकरण की जांच और उसकी दिशा दूसरी होती, क्योंकि भ्रष्टाचार के दायरे में वे अफसर भी आते, जो गड़बड़ी में शामिल हैं। पुलिस विभाग के अफसरों ने भी केंद्र का मामला मानकर बिना विचार किए पत्र मिलने के बाद दस दिन के भीतर में प्रकरण दर्ज कर लिया। इतना ही नहीं, विभाग ने सारे दस्तावेज भी क्राइम ब्रांच को जांच करने के लिए सौंप दिए। भोपाल क्राइम ब्रांच को आपराधिक गतिविधियों की विशेषज्ञता हासिल है, लेकिन जिस तरह का भ्रष्टाचार पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में हुआ है, उसकी योग्यता ईओडब्ल्यू जैसी एजेंसी के पास है। पुलिस विभाग की रिपोर्ट के आधार पर 972 अपात्र लाभार्थी मान रही है, जबकि केंद्र सरकार की रिपोर्ट में यह संख्या एक हजार से अधिक है। इसके अलावा क्राइम ब्रांच की रिपोर्ट में 44 मदरसों और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं की भूमिका संदिग्ध मान रही है, जबकि केंद्र सरकार की रिपोर्ट में यह संख्या 83 है। इससे साफ है कि प्रदेश स्तर पर फैले इस स्कॉलरशिप घोटाले के तार रसूखदार अफसरों और कुछ सफेदपोश अपराधियों को बचाने के लिए यह पूरा षडयंत्र रचा गया है।
आठवीं तक के छात्र पात्र थे और लाभ दे दिया नवमीं के छात्रों को
केंद्र सरकार की तरफ से अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति स्कीम में 62 लाख 27 हजार रुपए से अधिक की रकम जारी हुई थी, जिसमें से सिर्फ साढ़े चार लाख रुपए पात्र लाभार्थियों को स्कॉलरशिप के तौर पर मिले हैं। बाकी रकम को पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अफसरों की मिलीभगत से बंदरबांट कर लिया। यह गड़बड़ी केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने पकड़ी थी और उसके बाद कार्रवाई के लिए मध्यप्रदेश सरकार को बोला था। विभाग ने भोपाल शहर के यू डाइस और नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल में जाकर चंद सेंकड में अंतर निकाल लिया था, जबकि इस योजना के तहत विभाग के अफसरों को यह पता था कि किस स्कूल अथवा मदरसे को योजना में पात्र माना जा सकता है। बावजूद इसके अफसर पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अफसर आंखों में पट्टी बांधकर उसे अनुमोदित करते रहे। केंद्र सरकार ने अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में 83 ऐसे संस्थानों को चिन्हित कर रिपोर्ट एमपी सरकार को भेजी थी। योजना के तहत स्कॉलरशिप में कक्षा एक से लेकर कक्षा आठवीं तक के बच्चों को ही उसका पात्र माना गया था, लेकिन कई संस्थाओं ने कक्षा नौंवी से लेकर बारहवीं तक की मान्यता भी नहीं थी और उन्हें अपने यहां पोर्टल में दर्शाकर यह लाभ ले लिया गया।