हाइवे पर मवेशी संकट, आवारा जानवर बने मौत के खुले इन्विटेशन
सड़कों पर आवारा मवेशियों की भारी संख्या में मौजूदगी से आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं। बारिश के मौसम में ये जानवर कीचड़ से बचकर डिवाइडरों पर डेरा डाल लेते हैं, जिससे खासकर बाइक और छोटे वाहन चालकों के लिए खतरा कई गुना बढ़ गया है।

रीवा। हाईवे पर सफर अब रफ्तार का नहीं, जोखिम का पर्याय बनता जा रहा है। रीवा से प्रयागराज और मिर्जापुर की ओर जाने वाले प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग इन दिनों अव्यवस्था के ऐसे दलदल में फंसे हैं, जहां हर दो किलोमीटर पर जानलेवा संकट मंडरा रहा है,आवारा मवेशियों के रूप में।
हजारों की संख्या में सड़क किनारे और डिवाइडर के बीच डेरा जमाए बैठे ये जानवर न केवल यातायात में बाधा बन रहे हैं, बल्कि गंभीर सड़क हादसों की वजह भी बनते जा रहे हैं। बारिश के मौसम में हालात और बिगड़ गए हैं, जब कीचड़ और पानी से भरे मैदानों से जानवर सड़क की ओर रुख कर रहे हैं।
अब हाइवे के डिवाइडर इनके अस्थायी ठिकाने बन चुके हैं। रीवा, रामनई, बेलवा पैकान, मनगवां, गंगेव, गोदरी, कटरा, कलबारी, सोहागी, चंदई, मिर्जापुर हाइवे के रघुनाथगंज, देवतालाब, मऊगंज, खटखरी और हनुमना बाईपास जैसे क्षेत्रों में यह समस्या विकराल रूप ले चुकी है।
इन मार्गों से प्रतिदिन हजारों वाहन गुजरते हैं, लेकिन हर चालक को जानवरों के झुंड के बीच से निकलना किसी जिंदा बचने की चुनौती जैसा बन गया है। विशेषकर बाइक और छोटे वाहन चालकों के लिए यह खतरा कई गुना बढ़ गया है, क्योंकि जानवर अचानक सड़क पार कर देते हैं, जिससे टक्कर की आशंका बनी रहती है।
पिछली कोशिशें नाकाम, दो साल से स्थिति जस की तस
करीब दो साल पहले प्रशासन ने इस दिशा में पहल करते हुए मवेशियों को सड़क से हटाने का अभियान चलाया था। पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मवेशी छोड़ने वालों पर कार्रवाई की गई थी और जानवरों को पकड़कर गौशालाओं में भेजा गया।
लेकिन यह अभियान महज चार दिनों में ही थम गया और हालात फिर पुराने ढर्रे पर लौट आए। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब तक इस अभियान को स्थायी रूप से लागू नहीं किया जाएगा और निगरानी के प्रभावी इंतजाम नहीं होंगे, तब तक यह संकट टला नहीं जा सकता।
पेट्रोलिंग वाहन सिर्फ दिखावे के लिए
हाईवे निर्माण और टोल वसूली का जिम्मा संभाल रही निजी कंपनियां भी केवल राजस्व वसूली में ही सक्रिय दिख रही हैं। टोल प्लाजा पर तैनात पेट्रोलिंग वाहन केवल शोभा की वस्तु बनकर रह गए हैं।
इनका उद्देश्य हाईवे से अवरोध हटाना और सुरक्षा सुनिश्चित करना है, लेकिन यह महज कागजों तक ही सीमित है। कर्मचारी टोल वसूली में व्यस्त रहते हैं और आवारा मवेशियों की समस्या को लेकर कोई सक्रियता नहीं दिखाई देती।
प्रतिदिन हाईवे में मवेशियों की हो रही मौत
बता दे हाईवे में गुजरने वाले तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आने से आए दिन मवेशियों की मौत भी हो रही है, कहां जाए तो प्रतिदिन 5 से 10 की संख्या में मवेशी हादसे का शिकार होते हैं, और उनकी मौत हो जाती है।
उनका शरीर हाईवे में छत - वितर हो कर पड़ा रहता है और वाहन उसी के ऊपर से गुजरते रहते हैं।
मौतों के आंकड़े भयावह, पर बेपरवाह हैं जिम्मेदार
बता दे सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष होने वाली मौतों में 5 से 10 प्रतिशत मामले सीधे तौर पर आवारा जानवरों के कारण होते हैं। इन हादसों में जान गंवाने वालों में अधिकांश मोटरसाइकिल और कार सवार होते हैं।
एक्सीडेंट के आंकड़े हर साल दोहराए जाते हैं, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई और व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं आता। विशेषज्ञों की मानें तो यदि समय रहते इस समस्या पर कड़ा और स्थायी कदम उठाया जाए, तो न केवल दुर्घटनाएं रोकी जा सकती हैं, बल्कि सड़कों को दोबारा सुरक्षित बनाया जा सकता है।
क्या कहती है जनता?
रोज़ाना हाइवे से आना-जाना होता है, लेकिन हर बार डर बना रहता है कि कहीं अचानक कोई जानवर सामने न आ जाए। कई बार हादसे होते भी देखे हैं।
सुमित दुबे, बाइक सवार, रीवा
प्रशासन ने पहले अभियान चलाया था, लेकिन वह सिर्फ दिखावा था। चार दिन बाद सब पहले जैसा हो गया।
शिव कुमार पटेल, स्थानीय निवासी, मनगवां