ऑपरेशन सिंदूर में सतना का चूंद गांव बना गर्व का प्रतीक, 300 से अधिक जवान सीमा पर तैनात

संघर्ष की गाथा को और गौरवमयी बनाता है मध्यप्रदेश के सतना जिले का चूंद गांव, जिसकी आबादी भले ही लगभग 4700 हो, लेकिन इसमें देशभक्ति कूट-कूटकर भरी है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान को करारा जवाब देने वाली भारतीय सेना में इस छोटे से गांव के 300 से अधिक जवान वर्तमान में सक्रिय रूप से तैनात हैं। गांव के कुल 500 से ज्यादा लोग अब तक फौज में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

ऑपरेशन सिंदूर में सतना का चूंद गांव बना गर्व का प्रतीक, 300 से अधिक जवान सीमा पर तैनात
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सतना. जब देश चैन की नींद सो रहा होता है, तब भारत माता के वीर सपूत सरहद पर दुश्मनों से दो-दो हाथ कर रहे होते हैं। इसी संघर्ष की गाथा को और गौरवमयी बनाता है मध्यप्रदेश के सतना जिले का चूंद गांव, जिसकी आबादी भले ही लगभग 4700 हो, लेकिन इसमें देशभक्ति कूट-कूटकर भरी है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान को करारा जवाब देने वाली भारतीय सेना में इस छोटे से गांव के 300 से अधिक जवान वर्तमान में सक्रिय रूप से तैनात हैं। गांव के कुल 500 से ज्यादा लोग अब तक फौज में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इस गांव के हर घर से कोई न कोई सेना से जुड़ा है, और यही इसे वीर सपूतों की धरती बनाता है। मिशन सिंदूर के दौरान भी जब भारत ने आक्रामक कार्रवाई की, तब चूंद गांव के बेटे मोर्चे पर सबसे आगे रहे। यह गांव न केवल सैनिकों की संख्या में आगे है, बल्कि देश के लिए अपने समर्पण और बलिदान की भावना में भी मिसाल बन चुका है।

चूंद गांव देशभक्ति की मिसाल हर घर से फौजी

मध्यप्रदेश के सतना जिले का चूंद गांव देशभक्ति की जीवंत मिसाल है। यहां का हर घर भारतीय सेना से किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है। कोई फौज में है, कोई नेवी में, कोई एयरफोर्स में, तो कोई स्पेशल कमांडो यूनिट का हिस्सा। यहां के बच्चों के पहले शब्दों में भारत माता की जय शामिल होता है और उनका पहला सपना वर्दी पहनने का होता है।

देश के अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर बनते देखना चाहते हैं, वहीं चूंद गांव के माता-पिता सिर्फ और सिर्फ फौजी बेटा या बेटी चाहते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और आज भी उतनी ही मजबूत है। गांव की मिट्टी ने कई शहीद दिए हैं-शहीद राइफलमैन समर बहादुर सिंह, शहीद नायक कन्हैया लाल सिंह और शहीद नायक बाबूलाल सिंह-जिनके नाम से गांव में शहीद स्मारक भी बना है। इन वीरों के बलिदान ने न केवल गांव को गौरवान्वित किया, बल्कि देशभर में चूंद को एक प्रेरणा का प्रतीक बना दिया। यह गांव न केवल वीरता का, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल रही राष्ट्रभक्ति की परंपरा का प्रतीक है।

सात पीढ़ियों से वीर सपूतों की धरती

मध्यप्रदेश के सतना जिले का चूंद गांव न सिर्फ वीरता का प्रतीक है, बल्कि सात पीढ़ियों से चली आ रही देशसेवा की परंपरा का सजीव उदाहरण है। ब्रिटिश शासनकाल, द्वितीय विश्व युद्ध, 1962 का चीन युद्ध, 1965 और 1971 की जंग, कारगिल युद्ध और अब ऑपरेशन सिंदूर-हर संघर्ष में इस गांव के सपूतों ने हिस्सा लिया और देश की रक्षा में अहम भूमिका निभाई।

आज भी भारत की लगभग हर बटालियन में चूंद गांव के जवान तैनात हैं, और मिशन सिंदूर में तो 300 से अधिक जवान पाकिस्तान की हर नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं। कुछ जवान छुट्टियों में घर आए थे, लेकिन जैसे ही मिशन की शुरुआत हुई, वे तुरंत मोर्चे पर लौट गए-बिना एक पल गंवाए। यहां की महिलाएं भी वीरता और धैर्य की प्रतीक हैं-कई बहनों के पति, कई मांओं के बेटे सीमा पर हैं। वे हर रोज टीवी और अखबारों से उनके समाचार ढूंढती हैं, आंखों में उम्मीद और दिल में दुआ लेकर।

गांव के बुजुर्ग और रिटायर्ड सैनिक आज भी कहते हैं-अगर देश पुकारे, तो हथियार उठाने को तैयार हैं। यही जज्बा और देशभक्ति चूंद को पूरे प्रदेश का गौरव बनाती है। यह गांव बताता है कि देशभक्ति केवल शब्द नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है। आज मिशन सिंदूर में भी यही परंपरा कायम है। सच में, चूंद गांव को ‘वीरों की धरती’ कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि गर्व का प्रतीक है।