कहानी चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की जो कहता था, नास्ते में नेता खाता हूं

जब देश की राजनीति बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ रही थी. और चुनाव रस्म अदायगी बन चुके थे. तभी एंट्री हुई ऐसे शख्स की...जिसने पूरा  सिस्टम हिला कर रख दिया...जो कहता था I eat politician in breakfast. कलम में लोहा और कुछ कर गुजरने का जोश था. जिसे देखकर सियासत कांप जाया करती थी. जिसके आने के बाद चुनाव मैदान सिर्फ राजनीति का अखाड़ा नहीं, संविधान का रणक्षेत्र बन गया था. जिसने नेताओं को याद दिलाया की लोकतंत्र का असली मालिक जनता होती है... आज बात करेंगे भारत के सबसे ईमानदार चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की जिसने कहा था. मैं सिस्टम बदलने आया हूं और बदलकर रहूंगा.. 

कहानी चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की जो कहता था, नास्ते में नेता खाता हूं
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Story of Election Commissioner TN Seshan: जब देश की राजनीति बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ रही थी. और चुनाव रस्म अदायगी बन चुके थे. तभी एंट्री हुई ऐसे शख्स की...जिसने पूरा  सिस्टम हिला कर रख दिया...जो कहता था I eat politician in breakfast. कलम में लोहा और कुछ कर गुजरने का जोश था. जिसे देखकर सियासत कांप जाया करती थी. जिसके आने के बाद चुनाव मैदान सिर्फ राजनीति का अखाड़ा नहीं, संविधान का रणक्षेत्र बन गया था. जिसने नेताओं को याद दिलाया की लोकतंत्र का असली मालिक जनता होती है... आज बात करेंगे भारत के सबसे ईमानदार चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की जिसने कहा था. मैं सिस्टम बदलने आया हूं और बदलकर रहूंगा.. 


  
दिसंबर 1990,,, जाड़े का समय था... रात करीब एक बजे,, सफेद एम्बैसडर कार... नई दिल्ली के पंडारा रोड के एक सरकारी मकान के पोर्टिको में रूकी. कार से उतरे वर्तमान केंद्रीय वाणिज्य मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी... क्योकिं स्वामी हारवर्ड यूनिवर्सिटी में शेषन को पढ़ा चुके थे.. तो बेतकल्लुफी से घर के भीतर घुस गए.. स्वामी को जब दक्षिण भारतीय खाना खाने की क्रेविंग हुआ करती थी. तो शेषन के घर पहुंच जाया करते थे...लेकिन,उस दिन स्वामी शेषन के यहां इतनी रात दही चावल खाने तो नहीं ही आए थे... वो आए थे प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का दूत बनकर.. आते ही प्रधानमंत्री का संदेश दिया. कि क्या आप भारत का अगला मुख्य चुनाव आयुक्त बनना पसंद करेंगे...शेषन राजी नहीं थे...लेकिन स्वामी आड़े रहे.. तो शेषन ने सोचने का समय मांगा... टीएन शेषन की जीवनी लिखने वाले पत्रकार के गोविंदन कट्टी लिखते हैं...कि स्वामी के जाने के बाद शेषन ने राजीव गांधी को फोन मिला कर कहा कि वो तुरंत उनसे मिलना चहते हैं.. शेषन पहुंचे तो देखा कि राजीव गांधी ड्राइंग रूम में बेसब्री से शेषन का इंतजार कर रहे थे... शेषन ने राजीव गांधी से पांच मिनट का टाइम मांगा... लेकिन... ये मुलाकात घंटों में तब्दील हो गई... थोड़ी देर बाद राजीव गांधी ने शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त का पद स्वीकार करने के लिए अपनी सहमति दे दी...लेकिन,,राजीव गांधी खुश नहीं थे... जब वो शेषन को दरवाज़े तक छोड़ने आए...तो कहा.. कि वो दाढ़ी वाला शख़्स एक दिन खूद को कोसेगा जरूर...  उस दाढ़ी वाले शख्स से राजीव गांधी का मतलब प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से था.


 
टीएन शेषन का राजीव गांधी के करीब आने की कहानी भी दिलचस्प है. राजीव गांधी शेषन के काम से बहुत प्रभावित थे... बाद में शेषन  और राजीव गांधी के घनिष्ठ संबंध भी बन गए...इस संबंध की शुरुआत तब हुई जब राजघाट में एक व्यक्ति ने राजीव गांधी पर गोली चला दी.शेषन को प्रधानमंत्री की हत्या के प्रयास करने के मामले की जांच करने को कहा गया... शेषन ने कहा,, उन्हें ऐसे कामों का कोई एक्सपीरियंस नहीं है.. शायद कोई और शख्स इस कम को मुझसे बेहतर कर सकता है...राजीव गांधी ने कहा, तुम निडर होकर बोलते हो.. तुम्हें किसी का डर नहीं है.. इसलिए मैं ये जिम्मेदारी तुम्हें दे रहा हूं...शेषन ने रिपोर्ट बनाई जो राजीव गांधी को पसंद आई.. बाद में उन्होंने शेषन को आंतरिक सुरक्षा सचिव बनने को कहा.. इस पद पर शोषन 1989 तक रहे. लेकिन सुरक्षा सचिव रहते,, वो राजीव गांधी की सुरक्षा देखने लग गए.. जैसे security expert हों..एक रोज उन्होंने राजीव गांधी के मुंह से बिस्किट ये कहते हुए छीन लिया...कि प्रधानमंत्री को ऐसी कोई चीज नहीं खानी चाहिए,, जिसका पहले टेस्ट ना किया गया हो....

लौटते हैं चुनाव आयुक्त टीएन शेषन पर...1990,, ये वो दौर था जब चुनाव भारत में 'मेक-अप शो' जैसा बन चुका था... बूथ कैप्चरिंग, फर्जी वोटिंग, हिंसा, पैसा, शराब, बाहुबल सब आम था. हालाकिं, चुनाव आयोग तब भी शेर था. बस उसके दांत नोच लिए गए थे.. तभी आयोग में टीएन शेषन की इंट्री हुई... नेताओं ने सोचा फाइलों में एक नया बाबू आया है. चाय की दो चुस्कियों में काबू कर लेंगे.. लेकिन यह शख्स अपनी कुर्सी को सिर्फ बैठने की चीज़ नहीं..संविधान की चौकी समझता था..शेषन ने आते ही कहा... अब से चुनाव आयोग बोलेगा.. और ज़ोर से बोलेगा.. नेता चौंके.. अफसर सन्न पड़ गए... सबने सोचा की कुछ दिनों की बात है...जैसे और अफसर शुरू शुरू में तामझाम मरते हैं फिर ठंडे पड़ जाते हैं...मगर शेषन तो तैयारी के साथ आए थे...  नियमों की किताब को हाथियार बनाया और ईमानदारी को ढाल...आचार संहिता, वोटर ID, खर्च सीमा… सब कुछ अब सख्ती से लागू होने लगा.. रैलियों से पहले चुनाव आयोग का फरमान जरूरी हो गया...देश भर में चर्चा होने लगी की.. एक अफसर आया है. जो कहता है नास्ते में नेताओं को खाता हूं.. 


बिहार में 90 के दशक में लालू प्रसाद यादव का सितारा बुलंदी पर था, और अपराध पराकाष्ठा की लेवल को पार कर चुका था...सत्ता के खिलाफ बोलने वाले हर आलोचक को दबाना और अपनी धाक जमाए रखना... लेकिन शेषन तो चुनाव आयोग में पारदर्शिता लाने की कसम खा कर आए थे...1995 में, जब बिहार विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तो शेषन ने बिहार के हर मतदान केंद्र पर पंजाब से स्पेशल कमांडो तैनात कर दिए.. लालू को सत्ता की पकड़ कमजोर होने का खतरा सताने लगा.. कहते हैं लालू यादव शेषन के नाम से इतना चिढ़ने लगे थे..कि उन्होंने एक बार यहां तक कह दिया था कि शेषनवा को भैंसिया पर बैठाकर हम गंगाजी में हेला देंगे..

शेषन अपने स्पष्ट जवाबों और बयानों के लिए जाने जाते थे. इसका जिक्र टीएन शेषन ने अपनी आत्मकथा में भी किया था. उन्होंने एक ऐसे ही वाक्ये का जिक्र करते हुए कहा,, कि प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समय के कानून मंत्री विजय भास्कर रेड्डी मुझे पीएम के पास लेकर गए और प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मुझसे कहा कि शेषन आप सहयोग नहीं कर रहे हैं..इसपर मैंने उन्हें जवाब दिया कि मैं कोई कोऑपरेटिव सोसाइटी नहीं हूं. मैं चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करता हूं.... 
यह कोई पहला वाक्या नहीं था. एक बार विधि सचिव रमा देवी ने चुनाव आयोग को फोन कर कहा कि विधि राज्य मंत्री रंगराजन कुमार मंगलम चाहते हैं कि अभी इटावा का उपचुनाव न कराए जाएं. ये सुनते ही शेषन ने प्रधानमंत्री को सीधे फोन मिला कर कहा कि सरकार को शायद ये गलतफहमी है कि मैं घोड़ा हूं. और सरकार घुड़सवार है. मैं ये स्वीकार नहीं करूंगा. अगर आपके पास किसी फैसले को लागू करने के बारे में एक अच्छा कारण है तो मुझे बता दीजिए. मैं सोचकर उसपर अपना फैसला लूंगा. लेकिन मैं किसी के हुक्म का पालन नहीं करूंगा... 

टीएन शेषन से जुड़ा 1993 का एक किस्सा बड़ा मशहूर है.. इसी साल 2 अगस्त को टीएन शेषन ने एक 17 पन्नों का आदेश जारी किया... इस आदेश में कहा गया था.. कि जबतक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तो उसके नियंत्रण में होने वाले हर चुनाव आगले आदेश तक स्थागित रहेंगे... इतना ही नहीं टीएन शेषन ने पश्चिम बंगाल की एक राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया... जिसकी वजह से उस समय के केंद्रीय मंत्री प्रणव मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था..
ये थे शेषन जिन्होंने दिखा दिया कि सरकार का लाख दवाब क्यों न हो अगर ईमानदारी से काम करने का संकल्प हो... तो सरकारें भी बौनी सबित होती हैं,,लेकिन आज… जब चुनाव आयोग सवालों के घेरे में हो तो.. शेषन की ईमानदारी याद आती है..