जहाँ पड़े प्रभु श्री राम के चरण....विंध्य की माटी, जिसका कण-कण चन्दन

विंध्य क्षेत्र, श्रीराम के वनवास से लेकर मां शारदा और विंध्यवासिनी की आराधना तक, आस्था और संस्कृति का अद्वितीय संगम है। रीवा इस पावन भू-भाग का केंद्र है, जहां सफेद शेर मोहन की गाथा, तानसेन की संगीत साधना और वीर बघेलों का शौर्य इतिहास गूंजता है। यहां की नदियां, जलप्रपात, प्राचीन मंदिर और समृद्ध प्राकृतिक धरोहर इसे पर्यटन, आस्था और विरासत के त्रिकोण में विशेष बनाते हैं।

जहाँ पड़े प्रभु श्री राम के चरण....विंध्य की माटी, जिसका कण-कण चन्दन

राजेंद्र पयासी 

विंध्य इलाका मां गंगा की लहरों के स्पर्श और मां नर्मदा के आंचल की छांव में बसा है। जब से विंध्य की धरा में भगवान प्रभु श्री राम के चरण पड़े, तब से यहां का कण-कण चंदन है।

जिसकी गोद में प्रभु श्री राम ने वनवास के 12 वर्ष बिताए हों, मां शारदा त्रिकूट पर बैठ कर धन धान्य बरसाती हों, उत्तर की ओर से मां विंध्यवासिनी कृपा दृष्टि बरसाती हों, भगवान कामतानाथ सारी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हों और देवतालाब के सदाशिव रक्षक हों, तो उस माटी की महिमा अद्वितीय ही कही जा सकती है। 

इसीलिए तो कवि रहीम खानखाना ने इस धरती के लिए लिखा थाः-

चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेश।

जा पर विपदा पड़त है, सो आवै एहि देश ।।

महामुनि अगस्त ऋषि के शिष्य विध्यांचल पर्वत की पीठ और उन्हीं नाम पर बसे विंध्य क्षेत्र में प्रकृति ने अनुपम उपहार दिए हैं। पर्वत जिसकी मेखला (करधनी), नर्मदा, सोन, टमस, भंवरसेन, समधिन, बीहर, बिछिया, महाना नदी आभूषण, एक सर्किल में 6 प्रपात इसकी महिमा का गुणगान कर रहे हैं।

सिरमौर के पावन घिनौची धाम में भगवान शिव तो चित्रकूट के हनुमान धारा के कलयुग के राजा हनुमान जी का सदियों से प्रकृति अभिषेक करती आ रही है। धन्य विंध्य की यह माटी जिसका गान किए बिना राष्ट्रगान भी अधूरा है।

उत्तरप्रदेश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शामिल तीर्थ राज प्रयाग, बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी व मां विंध्यवासिनी का धाम विंध्यधाम और भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट, मां शारदा धाम मैहर, मां नर्मदा और सोन नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक, मार्कंडेय ऋषि की तपो भूमि को एक सर्किल में जोड़ने वाली विंध्य प्रदेश की राजधानी रीवा है।

रीवा को अब विश्व के पर्यटन नक्शे में भी स्थान मिल चुका है।

प्रकृति की प्रचुर संपदाओं से परिपूर्ण विंध्य की धरती सृष्टि का ऐसा स्थान है, जहां सृष्टिकर्ता ने केवल उसे ही दिया, संसार में किसी और को नहीं। चाहे हम व्हाइट टाइगर की बात करें या फिर सुंदरजा आम की, चाहे आधा दर्जन जल प्रपातों (पुरवा, चचाई, टॉस, क्योंटी, देवलहा, बहुती) की सर्किल की बात करें या फिर सुपाड़ी के खिलौनों की। दुनियां में और कहीं नहीं मिलते।

प्राकृतिक संरचनाओं को छोड़ दिया जाय, तो जहां है भी उन्हें रीवा ने ही दिए हैं। कर्क रेखा पर स्थित विंध्य की मांटी ने कई विभूतियों को भी जन्म दिया है। संगीत के क्षेत्र में तानसेन, शहनाई विस्मिल्ला खां मैहर, चातुर्य व नीति में बीरबल, खेल में गामा पहलवान, संस्कृत साहित्य में कवि बाणभट्ट हुए।

दुनिया का इकलौता महामृत्युंजय मंदिर रीवा में है। इतना ही नहीं, एक ही पत्थर पर बनी 26 फीट की विशालकाय भगवान शिव की (भैरव बाबा गुढ़) प्रतिमा रीवा के अलावा कहीं सुनने को नहीं मिली। भगवान विश्वकर्मा द्वारा एक रात में बनाया गया शिव मंदिर भी यहीं देवतालाब में स्थित है।

मऊगंज के दुविया में चतुर्भुज भगवान का अत्यंत प्राचीन मंदिर है। यहां की स्थापत्य कला 1500 साल पुरानी है। वेंकट भवन में रखी कल्चुरी कालीन गोरगी की प्रतिमाएं इसका प्रमाण हैं।

रीवा ही है, जहां केवल 200 लड़ाकों ने नयकहाई में पेशवा की 10 हजार सेना को पछाड़ दिया था। शौर्य स्मारक व उसकी छतुरियां वीरता की गवाह हैं। यह तो हमें विरासत में मिला है।

अब तो बांधवगढ़ किला और अभ्यारण्य, संजय गांधी टाइगर रिजर्व सीधी, सोन घड़ियाल अभ्यारण्य बगदरा सिंगरौली, दो सौ वर्ग किमी में फैला बाणसागर बांध और उसके टापू में स्थित सरसी पिकनिक स्पॉट गोवा की समुद्री लहरों का एहसास कराता है।

रीवा के मुकुंदपुर में दुनिया का पहला व्हाइट टाइगर सफारी जहां प्रकृति में पाये जाने वाले अधिकांश थलचरों का न केवल दर्शन कराता है, बल्कि रीवा को पर्यटन के क्षेत्र में परिपूर्णता का पूरा आभास कराता है। एशिया का सबसे बड़ा बदबार सोलर ऊर्जा प्लांट आसमान से हिंद महासागर की झलक दिखाता है।