रीवा रियासत: बघेलों की वीरता, साहित्य की शान और सफेद शेर ‘मोहन’ की ऐतिहासिक गाथा
रीवा रियासत की स्थापना 1605 में हुई और 1948 में भारत में विलय हुआ। बघेल राजवंश ने वीरता, संस्कृति और साहित्य में योगदान दिया। राजा विश्वनाथ सिंह ने पहला हिंदी नाटक लिखा। महाराजा मार्तण्ड सिंह द्वारा पकड़ा गया सफेद शेर 'मोहन' आज भी रीवा की पहचान बना हुआ है। रियासत का इतिहास मुगलों, अंग्रेजों और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा रहा।

ऋषभ पांडेय | रीवा
मध्य भारत की दक्षिणी सीमा से पूरब के झारखंड तक फैली रीवा रियासत का इतिहास किसी गाथा से कम नहीं। 13000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल, 18 लाख जनसंख्या (1941), और 10.7 लाख की सालाना मालगुजारी वाली यह रियासत वर्ष 1605 में स्थापित हुई थी और 1948 में भारत की स्वतंत्रता के बाद इसका विलय भारत गणराज्य में हुआ।
बांधवगढ़, जो आज राष्ट्रीय उद्यान के रूप में प्रसिद्ध है, तब एक समृद्ध बघेल राज्य का गढ़ था। 1597 में अकबर ने बांधवगढ़ को मुगलिया सल्तनत में शामिल कर लिया। परंतु वीरभद्र देव के वंशज दुर्योधन सिंह को 1602 में स्वतंत्रता मिली और 1605 में जेठे वारिस विक्रमादित्य सिंह को 18 परगनों के साथ रीमा मुकुंदपुर जागीर मिली।
विक्रमादित्य सिंह ने गढ़ी (जिसे 1544 में जलाल खां ने बनवाया था) को अपनी राजधानी बनाया और वहां से रीमा रियासत की शुरुआत हुई। बीहर-बिछिया नदियों के संगम पर बसी रीमा नगरी, शीघ्र ही रीवा कहलाने लगी। रीवा रियासत का इतिहास केवल प्रशासनिक सीमाओं का नहीं बल्कि वीरता, साहित्य, धर्म और संस्कृति का भी है।
मुगलों से दोस्ती, बुंदेलों से टकराव
राजा अमर सिंह (1824-40) को शाहजहां से पंचहजारी मनसब मिले और वे दो बार शाही अभियानों में शामिल हुए। उनके पुत्र राजा अनूप सिंह ने जब चौरागढ़ के गोंड राजा हिरदेसाह को शरण दी, तो बुंदेला राजा पहार सिंह ने रीमां गढ़ लूट लिया। हस्तक्षेप आमेर के राजा जयसिंह ने किया और 1656 में रीवा पुनः अनूप सिंह को मिला।
भवन, मंदिर और काव्य परंपरा
राजा भाव सिंह (1660-94) ने न केवल महलों और मंदिरों का निर्माण कराया, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी राज्य को समृद्ध किया। जगन्नाथ मंदिर, गोलगुम्बद, रानी तालाब, अजव कुंवरी बाउली आज भी उनके योगदान की गवाही देते हैं।
राजनीति और परिवार संघर्ष
भाव सिह की संतान नहीं होने पर उन्होंने अपने भाई के पुत्र अनिरुद्ध सिंह को गोद लिया, पर दुर्भाग्यवश उन्हें एक कन्या ने हताहत कर दिया। उनके पुत्र अवधूत सिंह (1700-1755) के शासनकाल में रीवा फिर आक्रमणों का शिकार हुआ। पन्ना से हिस्देसाह बघेलों साहबराय, मर्दनराय, गयंदसाह ने अपने आए और रीमांगढ़ पर कब्जा कर लिया। वीर प्राण देकर गढ़ी को मुक्त कराया।
अंग्रेजों से संधियां, आधुनिकता की ओर
1755 में राजा अजीत सिंह ने शासन संभाला। उन्होंने बक्सर युद्ध के दौरान शाह आलम की गर्भवती बेगम को पनाह दी। इसी समय बुंदेल नवाब अली बहादुर ने हमला किया पर 200 बघेली वीरों ने उसकी10,000 की सेना को पछाड़ दिया। राजा जय सिंह (1809-1834) ने 1812 में ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि की। उन्हें 15 तोपों की सलामी और हिज हाईनेस की उपाधि मिली।
विश्वनाथ सिंह और साहित्य का स्वर्णकाल, लिखा नाटक
विश्वनाथ सिंह (1834-1874) हिन्दी साहित्य में अद्वितीय योगदान देने वाले पहले शासकों में रहे। उन्होंने आनंद रघुनंदन नामक पहला हिन्दी नाटक लिखा। उन्होंने कर वसूली में सुधार, प्रशासन का केंद्रीयकरण और सेना को सशक्त बनाया।
बघेलखंड एजेन्सी बनी और अंग्रेजों ने किया कामकाज में हस्तक्षेप
1871 में अंग्रेजों ने बघेलखंड एजेन्सी बनाई। रीमा अब रीवा कहलाया, क्योंकि फारसी में मैं की जगह वह का चलन था। राजा रघुराज सिंह (1874-1880) साहित्य प्रेमी थे, लेकिन धर्मांधता के चलते राज्य दिवालिया हो गया। 1875 में ब्रिटिश एजेंसी ने शासन अपने हाथों में ले लिया।
व्यंकटरमण सिंह और गुलाब सिंह का काल, जब आई आधुनिकता
व्यंकटरमण सिंह ने आधुनिकता को अपनाया, रेल लाइन, स्कूल, अस्पताल और पहली बार कार और विमान रियासत में आए। उनके निधन (1918) के बाद गुलाब सिंह महाराजा बने। उनके शासन में उच्च शिक्षा, न्यायपालिका, बैंकिंग व्यवस्था और बुनियादी ढांचा विकसित हुआ।
स्वतंत्रता संग्राम में विन्ध्य की भागीदारी
1942 में अगस्त क्रांति के दौरान रीवा की जनता ने भी आंदोलन में भाग लिया राजा गुलाब सिंह पर हत्या के आरोप लगे, लेकिन वे दोषमुक्त हुए और 1945 में उन्होंने उत्तरदायित्व पूर्ण शासन की घोषणा की। 31 जनवरी 1946 को प्रशासनिक अधिकार मार्तण्ड सिंह को दिए गए। 11 मार्च 1948 को भारत सरकार से रियासत को भारत संघ में विलय की संधि हुई। 1 अप्रैल को विन्ध्य प्रदेश बना और रीवा उसका केंद्र बना।
सफेद शेर मोहन की गाथा
1951 में महाराजा मार्तण्ड सिंह ने सफेद बाघ मोहन को सीधी के जंगल से पकड़वाया, जिसने बाद में रीवा की वैश्विक पहचान बनाई। 30 अक्टूबर 1956 को मोहन की रानी ने 5 शावकों को जन्म दिया। सन् 1958 से 1972 तक, मोहन और उसकी संतानें गोविंदगढ़ महल में रहीं।
वहां से सफेद बाघों को विभिन्न चिड़ियाघरों में भेजा गया, दिल्ली चिड़ियाघर (भारत का पहला सफेद बाघ प्रदर्शन स्थल) डिएगो जू (अमेरिका) 1960 में, सिंगापुर और लंदन जैसे शहरों में मोहन की सन्तानो की पीढ़ियां पहुंचीं आज दुनिया में 500 से अधिक सफ़ेद बाघ हैं