भोपाल में अस्थायी और आउटसोर्स कर्मचारियों की महाक्रांति रैली 

भोपाल के तुलसी नगर स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर पार्क में रविवार को मध्य प्रदेश के बैंक मित्र, पंचायत चौकीदार, पंप ऑपरेटर, अंशकालीन भृत्य, राजस्व सर्वेयर, आउटसोर्स और अस्थायी कर्मचारी एक साथ मंच पर जुटे। इन सभी ने मिलकर ‘महाक्रांति रैली’ के जरिए अपनी परेशानियों को सरकार के सामने रखा। बड़ी संख्या में प्रदेश भर से कर्मचारी पहुंचे।

भोपाल में अस्थायी और आउटसोर्स कर्मचारियों की महाक्रांति रैली 

भोपाल: राजधानी भोपाल के तुलसी नगर स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर पार्क में रविवार को मध्य प्रदेश के बैंक मित्र, पंचायत चौकीदार, पंप ऑपरेटर, अंशकालीन भृत्य, राजस्व सर्वेयर, आउटसोर्स और अस्थायी कर्मचारी एक मंच पर जुटे। इन सभी ने मिलकर ‘महाक्रांति रैली’ के जरिए अपनी परेशानियों को सरकार के सामने रखा। बड़ी संख्या में प्रदेश भर से कर्मचारी पहुंचे थे।प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों ने कहा कि अब प्रदेश की सरकारी व्यवस्थाएं स्थायी कर्मचारियों की जगह अस्थायी और आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे चल रही हैं। सीएम राइज स्कूल, वल्लभ भवन और पंचायत कार्यालयों तक में नियुक्तियां आउटसोर्स के जरिए की जा रही हैं। लेकिन इन कर्मचारियों को बहुत कम वेतन मिलता है और वह भी समय पर नहीं मिलता।

ग्राम पंचायत में 25 साल से चौकीदारी कर रहे रामनिवास केवट ने बताया कि उन्हें अब भी सिर्फ 2,000 महीना वेतन मिलता है, जो कई बार 5–6 महीने तक नहीं आता। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई और घर चलाना बहुत मुश्किल हो गया है। रैली के संयोजक वासुदेव शर्मा ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे कर्मचारी मध्यप्रदेश में नौकरियों में लागू ठेका प्रथा,कंपनी राज और अस्थायी व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म करने की भी मांग कर रहे हैं. इसके अलावा, बैंक ग्राहक सेवा केंद्रों से कंपनियों को हटाकर 'बैंक मित्रों को सीधे बैंक से जोड़ने और उन्हें नियमित वेतन देने की मांग भी उठी है. इसके साथ ही, लोकल यूथ राजस्व सर्वेयर के लिए भी एक निश्चित मासिक वेतन तय कर उन्हें नियमित रोजगार देने की मांग हो रही है. आंदोलन के आयोजकों का मानना है कि ठेका प्रथा व्यवस्था कर्मचारियों के साथ अन्याय है और इससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब होती है. आंदोलन के आयोजकों ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि लंबे समय से कार्यरत अस्थायी कर्मियों से कम वेतन पर नियमित कार्य कराना श्रमिक शोषण है. न्यायालय ने 'समान काम-समान वेतन' और सामाजिक सुरक्षा को कर्मचारियों का संवैधानिक अधिकार बताया है.प्रदर्शनकारियों ने सरकार से मांग की है कि न्यूनतम वेतन 21,000 प्रति माह किया जाए और लंबित वेतन तुरंत दिया जाए।